BA Semester-5 Paper-2B History - Socio and Economic History of Medieval India (1200 A.D-1700 A.D) - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2788
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 6

मुगलकाल में व्यापार और वाणिज्य

(Trade and Commerce in Mughal Period)

प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर -

मुगलकाल में व्यापार का विस्तार

मुगलों से पूर्व भी भारत में सल्तनतकालीन शासकों ने शान्ति सुरक्षा स्थापित की तथा व्यापार वाणिज्य के विकास में योगदान दिया किन्तु मुगलों के आगमन से एक विशाल साम्राज्य में एक सुचारु शासन व्यवस्था लागू होना निसंदेह एक असाधारण बात थी।

तुर्कों की भाँति मुगलों ने भी नए नगरों का निर्माण कराया तथा पुराने नगरों का पुनर्निर्माण कराया। नए नगरों जैसे आगरा, दिल्ली, लाहौर, मुल्तान, पटना, इलाहाबाद, अहमदाबाद, अजमेर, औरंगाबाद, बीजापुर, गोलकुंडा आदि का विकास हुआ। मुगलों ने कई मंडियों, बाजारों, सड़कों, सरायों आदि के निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जिससे कि देश में व्यापार तथा वाणिज्य का अबाध विकास होता रहे। इस प्रकार मुगलों के काल में वाणिज्य तथा व्यापार का विस्तार पहले की अपेक्षा ज्यादा होने लगा। मुगल काल में भी आन्तरिक और विदेशी व्यापार ने काफी प्रगति की थी।

मुगलकाल में आन्तरिक व्यापार

मुगलकाल में आन्तरिक व्यापार प्रचुर मात्रा में होता था। आन्तरिक व्यापार स्थल तथा नदी मार्ग दोनों से होता था। मुल्तान, लाहौर, दिल्ली, आगरा, आदि बड़ी-बड़ी मंडिया थीं। इन मंडियों से सामान कस्बों तथा गाँवों में पहुँचता था। कस्बों तथा गाँवों में भी छोटी बड़ी मंडियाँ होती थीं। जहाँ हर आवश्यकता की वस्तु बेची और खरीदी जा सकती थी। इन मंडियों की स्थानीय व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका थी। ट्रेवर्नियर के वर्णन से पता चलता है कि छोटे-छोटे गाँवों में भी चावल, आटा, मक्खन, दूध, फल, सब्जियाँ उपलब्ध रहती थीं। यात्रियों को खाने-पीने की चीजें साथ लेकर चलने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि ये हर जगह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थीं।

गुजरात वाणिज्य का बहुत बड़ा केन्द्र था। यहाँ से विदेशों से आया सामान सारे देश में जाता था। गुजरात में वस्त्र निर्माण होता था तथा उन वस्त्रों की माँग सम्पूर्ण देश में भी होती थी। राजस्थान और मालवा से गेहूँ सारे देश में जाता था। मालवार तथा दक्षिण भारत में गेहूँ अधिक होते थे जो सारे देश में भेजे जाते थे। लाहौर, कश्मीर से सारे देश को शॉल भेजा जाता था। इस प्रकार मुगल काल में आन्तरिक व्यापार व्यापक था।

मुगलकाल में विदेशी व्यापार

मुगलकाल में विदेशी व्यापार जल तथा स्थल दोनों मार्गों से होता था। मुगलकाल में भारत का विदेशी व्यापार मुख्यतः एशिया तथा यूरोप से था। देश के मुख्य आयात सोना, कच्चा रेशम, घोड़े, धातुएँ, बहुमूल्य पत्थर, मखमल एवं दास थे। विभिन्न प्रकार के सूती कपड़े, मिर्च, औषधि, शोरा, नील आदि देश के प्रमुख निर्यात थे। बर्नियर ने लिखा है कि भारत मध्य एशिया और अफगानिस्तान से सूखे मेवे और ताजे फलों को मंगाता था। इसी प्रकार तिब्बत नेपाल और भूटान से स्थल मार्ग द्वारा विभिन्न वस्तुओं का आयात-निर्यात करता था। बाबर ने काबुल तथा भारत के मध्य घनिष्ठ व्यापारिक संबंधों का उल्लेख किया है।

यूरोपीय व्यापारियों के भारत आगमन के बाद से भारत का अधिकांश व्यापार जल मार्ग से होने लगा। अकबर के राज्यकाल से अंग्रेजों तथा डचों की क्रियाशीलता भारत में बढ़ने लगी। यूरोपीय व्यापारियों ने भारत में अनेक कारखाने स्थापित किए। यूरोपीय व्यापारियों के आने से अरब व्यापार समाप्त हो गया। भारत के विदेशी व्यापार पर अंग्रेजों ने कब्जा जमाना प्रारंभ कर दिया तथा धीरे-धीरे बहुत रियायतें लीं। इस प्रकार 18 वीं शताब्दी तक भारत का विदेशी व्यापार यूरोप के पक्ष में होने लगा।

निर्यात और आयात

शताब्दियों से भारत का व्यापारिक सम्बन्ध अन्य देशों के साथ रहा है। कालांतर में व्यापार की पद्धति और व्यापार में शामिल वस्तुओं में परिवर्तन होता रहा। 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान भी भारत का अन्य देशों के साथ समृद्ध व्यापारिक लेन-देन कायम था। इस काल के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषता यूरोपियों का भारत में आगमन था। इससे भारत के . विदेश व्यापार में कई गुना वृद्धि हुई। इस विदेशी व्यापार में भारतीय माल का निर्यात बहुत अधिक था जबकि आयात की मात्रा काफी कम थी। इस भाग में हम स्थल मार्ग से होने वाले विदेशी व्यापार की चर्चा करेंगे।

निर्यात

मुख्य रूप से कपड़ा, शोरा और नील का निर्यात किया जाता था। चीनी, अफीम, मसाले और अन्य विभिन्न उत्पादन निर्यात की अन्य वस्तुएँ थीं।

कपड़ा -

इस काल के दौरान भारत में कपड़ा उत्पादन अपने उत्कर्ष पर था। निर्यात बढ़ने से उत्पादन में काफी तेजी से वृद्धि हुई।

यूरोपीय व्यापारियों के आने से पहले मुगल, खोरासानी, इराकी और आर्मीनियन भारतीय कपड़े के मुख्य खरीददार थे। ये इन कपड़ों को मध्य एशिया, ईरान और तुर्की ले जाते थे। भारत के विभिन्न भागों से खरीदी गई इन वस्तुओं को लाहौर के रास्ते स्थल मार्ग से ले जाया जाता था। व्यापार के कुल परिमाण का अनुमान लगाना कठिन है। 17वीं शताब्दी के बाद से ही डच और अंग्रेजों ने भारतीय कपड़ों का व्यापार करना शुरू कर दिया था। व्यापार के लिए कपड़ों की कई किस्में उपलब्ध थीं जैसे बाफ्ता, समानी, खैराबादी, दरियाबादी, अमबर्ती, कायमखानी, अन्य कई तरह के सूती कपड़े और मलमल तथा मोटा सूती कपड़ा (calico)। बाद में पूर्वी तट से भी सूती वस्त्रों के कई प्रकार प्राप्त किए जाने लगे। छींट और रंगीन कपड़ों की विदेशों में खूब मांग थी। गुजरात, जौनपुर और बंगाल के कालीनों का भी निर्यात होता था।

शोरा -

शोरा से बारूद बनाया जाता था और यूरोप में इसकी काफी मांग थी। 16वीं शताब्दी के दौरान इसके निर्यात का कोई हवाला नहीं मिलता है। 17वीं शताब्दी में, डच कंपनी ने कोरोमंडल से इसका निर्यात आरंभ किया। इसके बाद अंग्रेजों ने भी इस पथ का अनुगमन किया। 17वीं शताब्दी के दौरान डच और अंग्रेज कोरोमंडल, गुजरात और आगरा से इसका काफी मात्रा में निर्यात कर रहे थे। 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बिहार से उड़ीसा होकर और बंगाल के तटों से इसका निर्यात आरंभ हुआ। जल्दी ही बिहार महत्वपूर्ण निर्यातक बन गया।

1658 के बाद अंग्रेज केवल बंगाल के तटों से प्रतिवर्ष 25,000 मन शोरा निर्यात कर रहे थे। 1680 के बाद यह मात्रा और भी बढ़ गई। डच कंपनी की मांग इससे लगभग चार गुना अधिक थी। 18वीं शताब्दी के दौरान भी अंग्रेज शोरा की मांग करते रहे।

नील-

अधिकांश उत्तरी भारत, पंजाब, सिंध और गुजरात में नील का उत्पादन होता था। इसका उपयोग रंगाई के लिए नीले रंग के रूप में होता था। निर्यात के लिए सरखेज (गुजरात) और बयाना (आगरा के निकट) में बनाई जाने वाली नील की काफी मांग थी। पहले यह गुजरात से ईरान की खाड़ी और लाहौर से एलेप्पो के बाजारों में भेजा जाता था। बाद में यूरोपीय कंपनियाँ भी इसका व्यापार करने लगीं।

16वीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थांश से पुर्तगाली इसका निर्यात करने लगे। ऊनी कपड़ों की रंगाई के लिए यूरोप में इसकी मांग काफी अधिक थी। 17वीं शताब्दी के दौरान डच और अंग्रेजों ने इसका निर्यात करना आरंभ किया। इसके अलावा ईरान के व्यापारी इसे एशिया के बाजारों और पूर्वी यूरोप के लिए खरीदते थे। आर्मीनियन भी इसे काफी मात्रा में खरीदते थे। 17वीं शताब्दी के दौरान इसे प्राप्त करने के लिए डच, अंग्रेजों ईरानियों, मुगलों और आर्मीनियनों के बीच प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई। 17वीं शताब्दी के मध्य के आसपास डच और अंग्रेज प्रतिवर्ष लगभग 15,000 या 30,000 मन नील प्राप्त कर रहे थे। बाद के वर्षों में यह मांग बढ़ती चली गई।

अन्य वस्तुएँ-

ऊपर उल्लिखित वस्तुओं के अलावा भारत से और भी कई चीजों का निर्यात होता था। फ्रांसीसी, डंच और अंग्रेज कंपनियाँ अफीम खरीदा करती थीं। मुख्य रूप से बिहार और मालवा से इसकी आपूर्ति होती थी। डच और इंग्लिश कंपनी बंगाल से भारी मात्रा में चीनी की भी खरीद करती थीं। डच यूरोप को अदरक का निर्यात करते थे। आर्मीनियन हल्दी, अदरक और सौंफ का निर्यात करते थे। गुजरात और इंडोनेशियाई द्वीप समूह के बीच बड़े पैमाने पर व्यापारिक गतिविधियाँ होती थीं। यहाँ से थोक मात्रा में कपड़ा इंडोनेशिया ले जाया जाता था और बदले में मसाले लाये जाते थे। भारत में बने सूती रंगीन और छींट के कपड़ों की खूब मांग थी। बाद में यह व्यापार कोरोमंडल तट से होने लगा, यहां से कपड़े का निर्यात और मसालों का आयात होने लगा।

आयात

भारत में होने वाले निर्यात की तुलना में आयात कुछ चुनी हुई वस्तुओं तक ही सीमित था। मुख्य रूप से चांदी का आयात होता था। यूरोपीय कंपनियां और यूरोप और एशिया के व्यापारी यहाँ से सामान खरीदकर चांदी में भुगतान करने के लिए चांदी का आयात करते थे। थोड़ा बहुत तांबे का भी आयात होता था। भारत में सीसा और पारे का भी आयात होता था। अंग्रेज चीन से भारत में रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तन का आयात करते थे। ईरान से अच्छी किस्म की शराब, कालीन और इत्र का आयात होता था। यूरोप में निर्मित चित्र - शीशों (cut glass), घड़ियों, चांदी के बर्तनों और छोटे औजारों की भारत के कुलीन वर्ग में मांग थी। सैन्य उपयोग के लिए मध्य एशिया से घोड़ों का आयात किया जाता था। राज्य घोड़ों का प्रमुख खरीदार था। इसके अतिरिक्त भारत का पड़ोसी पहाड़ी राज्यों से भी व्यापारिक सम्बन्ध था। भूटान और नेपाल से कस्तूरी भारत लाई जाती थी यहाँ यह यूरोपीय व्यापारियों द्वारा खरीदी जाती थी। नेपाल और तिब्बत से सुहागा का आयात किया जाता था। इन पहाड़ी राज्यों को इसके बदले में अनाज और लोहा भेजा जाता था।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- सल्तनत के सैन्य-संगठन पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
  7. प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  8. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- मुस्लिम राजवंशों के द्रुतगति से परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजतंत्र की विचारधारा स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- सल्तनत काल में 'दीवाने विजारत' की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- सल्तनत कालीन राजदरबार एवं महल के प्रबन्ध पर एक लघु लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- 'अमीरे हाजिब' कौन था? इसकी पदस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  15. प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
  16. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
  17. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की पदस्थिति स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
  21. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
  24. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  27. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- 'खिलजी क्रांति' से क्या समझते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  30. प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
  31. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
  32. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  33. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
  34. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  35. प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व सुधार नीति के विषय में बताइए।
  37. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक विजय का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
  39. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
  40. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति नीति का वर्णन कीजिये।
  41. प्रश्न- सूफी विचारधारा क्या है? इसकी प्रमुख शाखाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके भारत में विकास का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
  43. प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
  44. प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  46. प्रश्न- “मध्यकालीन युग में जन्मी, मीरा ने काव्य और भक्ति दोनों को नये आयाम दिये" कथन की समीक्षा कीजिये।
  47. प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
  48. प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  51. प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
  54. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
  55. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की क्या दशा थी? इस काल की एकमात्र शासिका रजिया सुल्ताना के विषय में बताइये।
  56. प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
  57. प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
  58. प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
  59. प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
  61. प्रश्न- 1200-1750 के मध्य महिलाओं की स्थिति को बताइये।
  62. प्रश्न- "देवदासी प्रथा" क्या है? व इसका स्वरूप क्या था?
  63. प्रश्न- रजिया के उत्थान और पतन पर एक टिपणी लिखिए।
  64. प्रश्न- मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- रजिया सुल्तान की कठिनाइयों को बताइये?
  66. प्रश्न- रजिया सुल्तान का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  67. प्रश्न- अक्का महादेवी का वस्त्रों को त्याग देने से क्या आशय था?
  68. प्रश्न- रजिया सुल्तान की प्रशासनिक नीतियों का वर्णन कीजिये?
  69. प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
  70. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
  71. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
  72. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व प्रशासन का कालक्रम विस्तार से समझाइए।
  73. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान मराठा शासन में राजस्व व्यवस्था की समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- शेरशाह की भू-राजस्व प्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  76. प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
  77. प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
  78. प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
  79. प्रश्न- मुगलकाल में जमींदार के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मुगलकाल में फसलों के प्रकार और आयात-निर्यात पर एक टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
  84. प्रश्न- मुग़ल काल में आंतरिक व्यापार की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
  85. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  88. प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  89. प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  90. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  91. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  92. प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  93. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
  95. प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  96. प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
  97. प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  98. प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
  103. प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  104. प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प

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